Indian Short Film
Indian Short Film- एक बेहतरीन भारतीये शोर्ट फिल्म
अरे मजनु, देख देख के कितना रोओगे?ये वाली भी भाग गई ना तुम्हें छोड़के?
यार कैसी सीए है ये?
मेरे को बोल के गई थी कि भाई की शादी में जा रही हू
...और खुद की शादी करवा के आ गई।
झूठी कहीं की।
टीना ने सही नहीं किया मेरे साथ।
अरे मतलब कम पैसों वालों की इज़्ज़त नहीं होता क्या कोई?
वो तो कभी थी ही नहीं।
और वैसे भी मुझे लगता है ये प्यार-व्यार से ज़्यादा सच्चाई देखनी चाहिए।
गुरू सच्चाई वच्चाई होती नहीं है दुनिया में।
झूठ पे झूठ बोलती रही ये।
हम यहाँ पे पूरे शादी के प्लान बना के बैठ गए थे। ये देखो।
शादी की पूरी तैयारियां करके बैठे थे।
ये वाला कार्ड। ये मम्मी को भी पसंद था हमारी।
बेटा मम्मी की चिंता छोड़ो और अपनी देखो।
और शादी? तुम्हारी शादी बहुत मुश्किल से होगी गुरू।
तुम्हारी कुंडली पढ़ के बैठे हैं।
और वैसे भी, दो पैसे ज़्यादा कमाओ।
ये प्यार व्यार से कब तक काम चला लोगे?
कमा तो रहे हैं हम पैसे। इतनी बड़ी दुकान है।
हम खुश हैं इतने में। हमको नहीं चाहिए ज़्यादा।
अब रो लियो हो तो चलें। कुछ पतंग वतंग उड़ाते हैं।
क्या पता वहीं पे पेच लग जाएं तुम्हारे?
ज्ञान मत दो तुम निकलो यहाँ से।
नहीं उड़ानी हमें पतंग। - ठीक है।
अरे जाओ यार। - चलते हैं।
हैलो।
हैलो?
जी।
आप आप नए हो यहाँ पर? मतलब कभी आपको देखा नहीं।
पतंग नहीं उड़ा रहे हो आज आप
हाँ, वो पतंग तो उड़ा रहा था। कट गई थी ना उस दिन, तो नहीं उड़ा रहा...
ध्यान कहीं और था ना आपका, ध्यान में तो तुम ही हो कल से।
कल में बहुत दिनों बाद आया था पतंग उड़ाने।
मेरी ना मम्मी भी बोलती हैं कि तुम्हारा मन बहुत चंचल है।
तो ध्यान भटकता है तुम्हारा।
भटक गया था तो पतंग कट गई।
है आपके पास?
पतंग? हाँ, हाँ। पतंग है। मांझा भी है, चकरी भी है।
तो लाईये उड़ाते हैं।
आपको आती है?
वैसे...
...आपने अपना नाम नहीं बताया।
आपने बताया क्या? - मैं शिशिर। शिशिर। आप?
कट गई।
कट गई? कट गई। जल्दी लपेटो।
ओह! हाँ। अरे। अरे।
चल। चल। चल। चल। चल।
तो आपका, कहाँ गई?
सुनो!
तुम आई क्यूं नहीं इतने दिनों से?
उस दिन भी बिना बताए चली गई थी ना तुम।
सुन रही हो तुम। मैं बात कर रहा हूँ तुमसे?
मुझे तुम्हारा नाम भी नहीं पता है।
अरे। आप तो गुस्सा हो गए।
चलिए, अब आ गई। खुश?
और पतंग है क्या आपके पास? उड़ाऐंगे क्या?
तुम पागल हो क्या? बरसात में कोई पतंग उड़ाता है क्या?
देखो, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है।
तुम्हारा नाम क्या है? - संध्या।
हम्म। संध्या।
देखो, मैं...
थोड़ा सा अजीब है पर मैं बोल देता हूँ।
जब से मैंने तुम्हें देखा है...
सोते जागते बस तुम ही ख्याल में रहती हो।
कभी, बस मैं छत पर घूमता रहता हूँ पागलों की तरह कि शा यद तुम दिख जाओ।
तुम्हारे इंतज़ार में मैं बस यहीं घूमता रहता हूँ?
मेरे इंतज़ार में? - हाँ।
मुझे लगता है शायद,
मुझे लगता है कि मुझे प्यार हो गया है पर तुम...
संध्या?
संध्या?
'पतंग उड़ाऐंगे क्या?'
बहुत शौक है ना आपको?
क्या? क्या? तुम्हारी दिक्कत क्या है? ये बार बार तुम गायब कहाँ हो जाती हो?
संध्या, मैं कुछ बोल रहा हूँ।
क्या बोलोगे? जो बोलना था वो तो बोल दिया तुमने।
क्या बोल दिया मैंने?
बहुत अच्छा लगता है जब कोई आपसे प्यार करता है, आपका इंतज़ार करता है...
... लेकिन ज़रूरी नहीं ना कि वो प्यार ज़रूरी हो।
क्या? तुम बोल क्या रही हो? ये इतना घुमा घुमा के क्या बोल रही हो?
साफ साफ बोलो ना।
मैं वो नहीं हूँ जो तुम मुझे समझ रहे हो।
तो क्या हो?
एक साया...
...जरे बस यहाँ फंसा है।
साया। मज़ाक चल रहा है ना यहाँ पे, हाँ?
मज़ाक तुम बन जाओगे...
...अगर तुमने इसे यहीं खत्म नहीं किया तो।
मेरी बात मानो। चले जाओ यहाँ से।
ये क्या साया वाया लगा रखा है तुमने?
अरे साया वाया कुछ नहीं होता है। ये ये सब बकवास है। अच्छी खासी दिखती हो तुम।
साए वाए तो दिखते ही नहीं है।
तुम्हारे तो पैर भी सीधे हैं।
और कहाँ, क्या, क्या फंसी क्या हो तुम?
कई साल हो गए इस बात को।
किस बात को कई साल हो गए अब?
अशोक..
...यहीं इसी छत से पतंग उड़ाता था।
बहुत प्यार था हममें। नई नई शादी हुई थी हमारी।
वो सिर्फ मेरे लिए ही पतंग उड़ाता था..
...और पागल हर पतंग पे मेरा नाम अपने नाम के साथ लिखता था।
कहता था अगर ये पतंग कटी...
तो जहाँ भी ये पतंग जाऐगी दोनों साथ में जाऐंगे।
दिवाली का टाईम था।
अशोक।
क्या हुआ? दिया लगाओ ना।
ध्यान तो कहीं और है ना आपका?
ध्यान में तो तुम ही हो। हमेशा।
अशोक।
मैं देख के आता हूँ ज़रा।
और, उपर दिए भी लगा दूंगा।
ठीक है।
अशोक?
अशोक!
कुछ तो अलग हुआ था उस दिन।
लोगों ने बहुत समझाया।
कहा कि अक्सर ऐसी बड़ी रातों में...
अशोक!
कोई अंजान आवाज़ तुम्हें पीछे से पुकारे..
तो उस तरफ मत जाओ।
लेकिन अशोक चला गया।
वो वापस नहीं आया।
मैं नहीं मानी लेकिन वक्त निकलता गया और मैं इंतज़ार ही करती रही।
सब बीच में ही छूट गया। मैं छूट गई।
अशोक से मुझे एक बार तो मिलना ही था।
सोचा अगर ऐसे नहीं तो मरने के बाद वो मुझे मिल जाए।
मतलब तुम सच में... ?
तुमने खुदकुशी कर ली?
और कैसे मिलती? - नहीं पर ऐसा कैसे हो सकता है?
अब तक तुम थी कहाँ पे?
मैं तो हमेशा से यहीं थी। तुम्हें उस दिन पहली बार पतंग उड़ाते देखा...
....तो लगा अशोक ही है। इसलिए तुम्हारे सामने आ गई।
तुम चाहती क्या हो?
कब तक अशोक का इंतज़ार करोगी तुम?
जब तक मुझे अशोक नहीं मिल जाता मैं यहाँ से नहीं जा सकती।
हर दिवाली की तरह मैं इस बार भी उसका इंतज़ार करूंगी।
कहा जाता है किसी काली रात में कोई आवाज़ तुम्हें पुकारे...
... तो पीछे मत मुड़ो।
अक्सर बड़ी रात में अच्छी बुरी दोनों आत्माएं इधर उधर भटकती रहती हैं।
और ऐसा साल में...
ज़्यादातर एक बार ही होता है जब ज़्यादातर लोग काला जादू...
...और कई रहस्यमयी चीज़ें उस रात करते हैं।
एक दरवाज़ा खुलता है। जब इंसान और ऐसे सायों का आमना सामना हो सकता है।
इसमें इंसान मर सकता है या हमेशा के लिए उनके पास जा सकता है।
अबे क्या चुतियापा है ये! भोसड़ीके, पागल हो गए हो क्या?
मतलब तुम चाह रहे हो कि वो चिपट जाए।
नहीं चिपट रही यार।
अगर चिपटना होता चिपट जाती ना वो।
मतलब तुम इंतज़ार में हो कि कुछ हो जाए।
एक बात बताओ। कहाँ ढूंढेंगे अशोक को?
अरे है कहाँ वो? जब वो चुड़ैल हो के अशोक को नहीं ढूंढ पाई तो कैसे ढूंढ लेंगे?
यार मुझे झुनझुनी छूट रही है।
क्या सच में ऐसा होता है क्या?
और अभी तो उस किताब में पढ़ लिया है कि वो वापस लौट कर नहीं आते।
उसने कहा है उसे अशोक से बात करनी है।
उसे सिर्फ भरोसा दिलाना है।
उसके लिए एक सच्ची आवाज़ ही तो चाहिए।
एक मिनट। एक मिनट।
क्या? क्या? क्या? - क्या, क्या नहीं?
अगर ये सब करने से मुक्ति मिल जाए तो अच्छा है ना?
सोच।
ना मुक्त हुई तो?
तुम है ना प्यार में सिर्फ चुतिया बने हो। और अब मरना भी चाह रहे हो क्या?
एक बात बताओ, तुम ही क्यूं?
क्योंकि हमारे साथ भी तो वहीं सब हुआ।
क्या मतलब? - हमको भी टीना छोड़ गई थी।
मुरली, तुम ही तो कहते हो....
...आजकल प्यार इंसानों से नहीं पैसों से किया जाता है।
हमसे अच्छी तो ये संध्या है ना। उसका प्यार तो सच्चा है।
तू बहुत जानने लग गया है इन लोगो को, हाँ?
अरे भई, फिल्मों में अच्छा लगता है..
...और वो सच की एक भूतनी है।
अच्छा, ठीक है। मान लेते हैं कि तुम अशोक बन भी जाते हो, तो क्या कहोगे उससे?
कि मैं अशोक हूँ। अब चली जाओ।
अगर तुम्हें अशोक समझ के ले गई तो फिर?
अच्छा करने चले हैं।
अच्छा करते हुए खत्म भी हो गए तो मलाल नहीं होगा।
तुम्हें लग रहा है उसका भला करने से तुम्हारा भला हो जाएगा?
भाई, कुछ नहीं होगा।
इसमें उसमें बहुत फर्क है।
और तुम ना न्यौता दे रहे हो याद रख लेना।
अगर वो चली भी गई ना तो फिर से वापस आ सकती है।
इतना तो पढ़ें हैं इस किताब में।
पर कोशिश करना तो बनता है ना?
मुरली, हमेशा धोखा ही तो खाए हैं हम।
अरे हमको कभी अपने दिल की बात कहने का मौका नहीं मिला ना किसी को।
तो इसी को बोलकर देखते हैं...
...चाहे वो किसी और के दिल की बात क्यूं ना हो।
मुरली, तुम ही तो बोलते हो बार बार...
..कि आज कल प्यार से ज़्यादा सच्चाई की ज़रूरत है।
कोशिश तो करना बनता है।
मौत के मुंह में जाने वाली बात है।
अच्छा भी करने चले हो तो किसका?
कल ना एक बड़ी रात है।
अगर तुम सच में ये करना चाहते हो, तो सोच लो?
धोका मिला तो दुनिया के लिए मज़ाक बन के रह जाओगे..
..तुम्हारी सच्चाई धरी की धरी रह जाएगी।
बेटा शिशिर, हाँ मम्मी।
बेटा ये दिए बाहर जला देना और दो दिए छत पर।
मम्मी, ये दिए क्यूं जलाते हैं?
बेटा, बुरी नज़र से बचने के लिए..
..और बुरी शक्तियों को दूर भगाने के लिए..
..और अंधेरे पर उजाले के लिए।
हाँ, मैं, मैं जला देता हूँ।
संध्या।
संध्या।
क्या कर रहे हो तुम?
मुझे मत देखो।
देखो, आज चांद नहीं है लेकिन फिर भी मैं यही हूँ।
तुम्हारा अशोक।
अशोक?
मुझे मत देख।
कब तक मेरा इंतज़ार करोगी?
कब तक तुम मुझे प्यार करोगी?
पागल हो तुम एकदम, जि़द्दी।
जैसी पहले थी बिल्कुल वैसी ही।
संध्या, प्यार हो तुम मेरा।
हमारा ऐसा अलग हो जाना इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
हमारी पतंग कट भले ही गई थी..
..हम अभी भी एक डोर से जुड़े हुए हैं।
संध्या, मैं बस तुमसे माफी मांग सकता हूँ...
क्यूंकि मुझे खुद नहीं पता कि मैं कहाँ चला गया।
मैं तुमसे बस यही कहने आया हूँ।
कि मैं जहाँ भी हूँ मैं ठीक हूँ।
पर, संध्या..
..हम फिर मिलेंगे।
लेकिन उसके लिए तुम्हें यहाँ से जाना होगा।
तुम्हारा..
..अशोक।
हाँ जी, मम्मी।
बत्रा जी ने एक रिश्ता भेजा तेरे लिए।
अरे यार मम्मी, मे को नहीं मिलना किसी से और ना किसी से शादी करनी है।
अरे बेटा, मिल तो ले एक बार। इतना अच्छा रिश्ता है।
तेरी फोटो भेजी थी लड़की को पसंद आई है।
हमसे मिलने से पहले वो चाहती है कि तुम दोनो मिल लो।
आ..
हैलो।
हैलो।
आप वो बत्रा जी के.. - ओह, हाँ, सॉरी।
मैंने सोचा पहले हम ही मिल लेते हैं।
नहीं, नहीं सही है।
वैसे, मैं शिशिर। - जानती हूँ, मैं संध्या।
संध्या?
"कैसे बताउं क्या मुझको लगा है अभी यूँ?"
"मिलके तुझी से मचलने लगा है ये दिल क्यूँ ?"
"छूटे थे हम या फिर...?"
" और एक हुए ...?"
"सूनी सी रातों में दिए क्यूं जले?"
"एक बार सुन लो बता दो मुझे क्या मैं मांगू?"
"मांगू तुझे तो या तुझको ही दिल से मैं चाहूँ?"
Kisi ko short film ki script chahiye ho to connect-8565887227
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