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Acting kaise sikhe | एक्टिंग

 

Acting tips for beginners in Hindi

Acting Kaise Sikhe | एक्टिंग कैसे सीखे 

जब अभिनय की बात आती है, तो कोई शॉर्टकट नहीं होता है। अनुभवी एक्टर एक्टिंग में शुरुआती लोगों के लिए कुछ टिप्स को साझा करते हैं, लेकिन चेतावनी देते हैं कि कला के लिए कड़ी मेहनत और समर्पण के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। कुछ अनुभवी कलाकार अपने विचार हमारे साथ साझा करते हुए एक नए कलाकार के लिए कुछ टिप्स देते हैं.

अभिनय के टिप्स और सफलता के लिए अपने स्वयं के दिशा-निर्देशों को साझा करते हैं - अभिनय, ऑडिशन और सामान्य रूप से जीवन शैली में बदलाव ही एक अभिनेता को सफल अभिनेता बनाता है। मुख्या रूप से अभिनय के नौ प्रकार हैं. आइये हम सबसे पहले उन सभी अभिनय के प्रकार को जान लेते हैं.
परफेक्ट एक्टिंग के 8 टिप्स (एक्टिंग)

टाइप्स ऑफ़ एक्टिंग / कला के प्रकार

कॉमेडी (हास्य रस)- जिस कला को देख कर दर्शक में हंसी और ख़ुशी पैदा करे उसे ही हम कला छेत्र में हास्य रस कहते हैं. एक कलाकार को अपने दर्शको को हँसाने और खुश करने के लिए परफेक्ट टाइमिंग पर डायलोग डिलीवरी और परफेक्ट एक्ट करना चाहिए. इस कला को सीखने के लिए आप राज कपूर की श्री ४२० फिल्म देख सकते हैं. जिस फिल्म में राज कपूर का हर एक्ट हास्य पैदा करता है.

वंडर (अद्भुत रस)- कला में जब कोई ऐसी परिस्तिती पैदा होती है जब उसे अद्भुत भाव देना होता है. आकस्मिक किसी घटना का घटित होना, अचानक एक पल में कोई डरावनी घटना होना. यह सब अद्भुत रस पैदा करते हैं. यह कला ज्यादातर हॉरर फिल्मो में ज्यादा घटित होता है. जहाँ कलाकार अपने सापने किसी भूत या अचंभित दृश्य को देखकर अद्भुत एक्ट करता है.

फियर (भयानक रस)- जब कोई कलाकार अपने एक्ट से डरा हुआ दिखाता है तब भयानक रस उत्पन्य होता है. दृश्य में किसी का खून होना, सुनसान और रात के अँधेरे में कुछ घटित होना जिससे कलाकार डरा हुआ इमोशन दे उसे भयानक रस है.

पीस (शांति रस)- शांत रस को समझने के लिए पूरी तरह से शून्य होना पडेगा. जब कोई पादरी, मंदिर का पुजारी या संत अपने सामने उपस्तित जनता को कोई उपदेश देता है. तो उस समय उस कलाकार के चेहरे पर शांत रस के भाव होते हैं.

सैड (करुणा रस)- दिल का टूटना, किसी की मौत होना, नोकरी का चला जाना या परीक्षा में फेल होना यह सारी परिस्तिती एक कलाकार को करुणा रस में एक्ट करने का मौका देती हैं. जब कलाकार मायूस या दुखी नजर आता है उसे ही करुणा रस कहते हैं.

लव (श्रृंगार रस)- प्यार का होना, ख्यालो में खो जाना, किसी के प्रति लगाव पैदा होना यह ही श्रृंगार रस के प्रकार हैं. इस तरह के परिस्तिती आप लव या प्यार – मोहब्बत वाली फिल्मो में ज्यादा देखने को मिलता है. जहाँ प्रेमी अपने प्रेमिका के ख्यालो में खोया रहता है.

दिस्गस्त (बीभक्त रस)- किसी दृश्य में गन्दा देखने, सूंघने या गंदे माहौल का एहसास में होना ही एक कलाकार में बीभक्त रस पैदा करता है. किसी दृश्य में जैसे इंसान या जानवर की सढ़ी लाश देखने पर जो स्तिति पैदा होती है.

एंगर (रौद्र रस)- जब कलाकार किसी दृश्य में गुस्से से लाल रौद्र रूप लेता है उसे ही रौद्र रस कहते हैं. उदहारण के लिए समझे जब माँ दुर्गा किसी राक्षस को मारने के लिए जो रूप लेती हैं या फिर शंकर जब गुस्से से लाल होकर तांडव करते हैं उस परिस्तिती को रौद्र रस कहते हैं.

ब्रेव (वीर रस)- जब कोई योध्या, फौजी युध्य में जाने से पहले जो साहस, वीरता और मनोबल दिखाता है उसे ही वीर रस कहते हैं.

Ghar par acting kaise sikhe

इन सारी कला को सीखना एक कलाकार के लिए जरूरी होता है. इसे आप कला छेत्र में कलाकारी करते करते सीख सकते हैं या फिर आप किसी अच्छे अभिनय स्कूल से भी इन बारीकियों को सीख सकते हैं. फिलहाल अपने कला को निखारने या उसे और बेहतर करने के लिए हम कुछ टिप्स दे रहे हैं जिन्हें आप फॉलो कर सकते हैं.

1. अभिनय क्लास में शामिल हो।

अभिनव क्लास में शामिल होकर अभिनय की बारीकियों को सीखना बहुत जरूरी होता है. अभिनय एक ऐसा विषय है जो कभी ख़त्म नहीं होता. जिस तरह हम अपने जीवन हर पल हर वक़्त एक नए परिस्थिति से जुगरते हैं और हमें रोज एक नया कुछ सीखने को मिलता है. बस यही समझिये हमारा जीवन भी एक अभिनय है फर्क सिर्फ इतना है यही काम हमें कैमरा या मंच पर करना है. हाँ यह हमेशा याद रखे किसी अभिनय स्कूल से जुड़ने का यह मतलब नहीं होता आप सौ प्रतिशत कला छेत्र में सफल हो जायेंगे. जैसे किसी स्कूल में जाने पर जॉब मिल जाना जरूरी नहीं उसी तरह अभिनय स्कूल से जुड़ना सफलता नहीं देता. इसके लिए आप को स्वयं प्रैक्टिकल अनुभव लेना होगा.



2. अपने किरदार को पूरी तरह से जाने।

थिअटर हो या कैमरा के सामने एक्टिंग एक कलाकार को उस पात्र या उस करेक्टर में पूरी तरह से डूबना पडेगा. उस कलाकार को ऐसे फील करना होगा जैसे ओ खुद ओ इंसान है. अगर आप एक राजा का रोल कर रहे हैं तो आप के उंदर राजा वाली फीलिंग लानी होगी. और वहीँ अगर आप एक भिखारी का अभिनव कर रहे हैं तो आप को एक भिखारी जैसे फील करना होगा. हमारे कहने का मतलब है जब तक आप अपने करेक्टर में पूरी तरह से नहीं रहेंगे, आप उसके इमोशन नहीं फील कर सकेंगे.



3. पूरी स्क्रिप्ट पढ़ें।

कई बार कलाकार स्क्रिप्ट में सिर्फ अपने किरदार के बारे में पढ़ते हैं. और उनके साथ काम कर रहे अन्य कलाकारों के रिएक्शन और डायलोग पर ध्यान नहीं देते हैं. इसका काफी बुरा प्रभाव आपके एक्टिंग पर पड़ सकता है. अगर आप इस तरह सिर्फ अपनी स्क्रिप्ट या किरदार पर ध्यान देंगे तो आपके साथ काम कर रहे अन्य कलाकार के इमोशन और डायलोग ट्यूनिंग को नहीं पकड़ सकेंगे. कला सिर्फ एक किरदार का नहीं होता यह एक टीम वर्क होता है.



4. अपने सह-कलाकार के साथ पूरी ट्यूनिंग रखे।

अभिनय चाहे किसी मंच पर हो या फिर कैमरे के सामने यह एक टीम वर्क है. आप अकेले यहाँ पर परफॉर्म नहीं कर सकते हैं. आपको अपने सह-कलाकार के साथ सहयोग रखना पडेगा. और सही ट्यूनिंग और टाइमिंग के साथ एक्टिंग करने पर बहुत सटीक और सही कलाकारी सामने आती है. जैसे कोई दृश्य चल रहा है किसी कॉलेज के कमरे में बैठे सभी स्टूडेंट के साथ. अब यहाँ पर आपका दोस्त टीचर को आंसर देता है, पर आप उसके अंसार को बीच में ही टोक कर रोक देते हो और क्लास के और सारे लडके हँसने लगते हैं. यहाँ पर आपको अपने सभी साथी कलाकारों के साथ सही टाइमिंग के साथ डायलाग बोलना पडेगा, तभी यह परफेक्ट शीन बन सकेगा. इतना ही नहीं आपको अपने डायरेक्शन टीम के साथ भी सहयोग रखना होगा. डायरेक्टर के बताये नियम और निर्देश के अनुसार और स्क्रिप्ट के हिसाब से हर काम करना होगा.



5. वही किरदार निभाये जिसमे आप सटीक बैठते हो।

वही किरदार अदा करे जिसमे आप अपने आप को सही और सहज महसूस करते हो. कई बार कोई किरदार आप पर जचता नहीं है या फिर आप उस किरदार में फिट नहीं बैठते होतो ऐसे किरदार को नहीं करना चाहिए. क्युकी अगर आप जबरन ऐसा करेंगे तो आप अपना सौ प्रतिशत नहीं दे पाएंगे और आप की एक्टिंग सही नहीं होगी.



6. वही करें जो किरदार की जरूरत हो।

कई बार एक कलाकार अपनी स्क्रिप्ट के दायरे से बाहर जाकर डायलोग बोलता है या एक्टिंग करता है. जो स्क्रिप्ट के अनुसार सही नहीं है. आप स्क्रिप्ट या किरदार के जरुरत के हिसाब से ही अपनी तैयारी करे और सही अभिनय के साथ उसे पूरा न्याय करे. यहाँ यह जरूरी नहीं आप डायलोग का रट्टा मार के डायलोग बोले, कई बार कलाकार दृश्य की परिस्तिती को समझते हुए अपने हिसाब से डायलोग में कुछ फेर बदल कर लेते हैं.



7. समर्पित, अनुशासित और जिज्ञासु बनें।

कला के लिए समर्पित समय इतना महत्वपूर्ण है जितना हम अपने नीजी जीवन में अपना हर काम करते हैं। कम से कम हर दिन एक घंटे तक अभ्यास करने से अनुशासन और ध्यान केंद्रित हो सकता है। आमतौर पर किसी के कौशल को सुधारने के लिए बहुत समय लगता है और अभ्यास होता है। एक धावक मैराथोन में भाग लेने के लिए सालो अभ्यास करता है और तब जाकर अंत में प्रतियोगिता के लिए भाग लेता है. उसी तरह एक अभिनेता को अपनी कला को अभ्यास और प्रयत्न से सुधारना चाहिए.

वह समय और समर्पण के कई रूप ले सकती है। अन्य अभिनेताओं को ढूंढें और उनके साथ नाटक पढ़ें और अभ्यास करे। और कलाकारों के साथ सीन वर्क करना, लिखना, समान विचारधारा वाले लोगों के साथ रचनात्मक व्यवहार करना। कभी भी दुनिया और काम के बारे में उत्सुक होना बंद न करें और वे एक-दूसरे के साथ संपर्क में बने रहे।

8. एक उद्यमी की तरह सोचें।

आप अपने आप में एक प्रोडक्ट हैं. जैसे कोई साबुन, तेल, बिस्कुट अन्य सामान बेचता है उसी तरह आप भी एक वस्तु हैं अभिनेता के तौर पर. जब फिल्म या नाटक बनता है तो वहां पर आपको बेचा जाता है. क्युकी एक अभिनेता अपने नाम और काम से बिकता है. जो जितना अच्छा अभिनय करेगा और फेमस होगा उतना महंगा बिकेगा.

नए कलाकार के लिए अंतिम टिप्स-

अकेले में आईने के सामने अभिनय करे.

टीम बनाकर उनके साथ अभ्यास करे.

अच्छी और रचनात्मक फिल्मे देखे.

अपने संवाद स्किल को सुधारने के लिए ज्यादा से ज्यादा नए शब्द सीखे.

अच्छी और बेहतर कला की पुस्तके पढ़े.

ऑडिशन देते रहे और लोगो से संपर्क बना के रखे.

अपने मनोबल को सक्रीय और सकरात्मक बना के रखे.

उम्मीद करते हैं आपको हमारे इस लेख से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा. हम आशा करते हैं आप जीवन में सफल और बेहतर कलाकार बनेंगे. धन्यवाद.

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