main ads

Story In Hindi Read (“इश्क का भूत”)

 

Story In Hindi Read
Story In Hindi Read

Story In Hindi Read

“इश्क का भूत”

चचा अब्दुल अपने बेटे करीम और बेगम दिलजान के साथ हैरान गली, परेसान मोहल्ले में रहा करते हैं. अब्दुल की उम्र साठ के करीब है उन्होंने अपनी सारी उम्र “करीम चिकन मटन शॉप” की दूकान पर गुजार दी. उन्होंने बड़े अरमान से अपने एकलौते बेटे के पैदा होने पर उस दूकान का नाम “करीम चिकन मटन शॉप” रखा था. अब करीम जवान हो गया है और आवारो की तरह मोहल्ले के कुछ निठल्ले लड़को के साथ सारा दिन आवारागर्दी किया करता है. करीम के ख्वाब बड़े-बड़े हैं पर कर्तब एक पैसे का नहीं. अब्दुल जो कमाकर घर लाते हैं उसका एक बड़ा हिस्सा अक्सर करीम चोरी से उड़ा ले जाता है. करीम की अम्मी दिलजान अक्सर बिस्तर पर बीमार पड़ी रहती हैं. पर अब्दुल उन्हें दवा के नाम पर सिर्फ खैराती अस्पताल के चक्कर कटवाता है. अब तो अल्लाह के भरोसे ओ अकेली बिस्तर पर पड़ी रहती है. अब्दुल और करीम दोनों के घर से चले जाने के बाद घर में देख-रेख करने वाला कोई न होता है. अब्दुल अकेले अपनी दुकान में व्यस्त रहता है और दूसरी ओर इन सब से बेखबर करीम बगल के मोहल्ले में रहने वाली नूर जहाँ के इश्क में पगलाये हुए हैं. नूर जहाँ का चेहरा चाँद से भी ज्यादा उजाला है. बस करीम मियाँ अपने किसी दोस्त के निकाह पर नूर जहाँ से टकरा गए और उसी दिन से उन दोनों में इश्क बाज़ी चलने लगी. तो आज जुम्मे का दिन है, अक्सर नूर जहाँ अकेले अपने घर से बाज़ार निकलती खरीदारी करने के लिए और करीम मियाँ अपने कुछ आवारा दोस्तों के साथ बाज़ार में नूर जहाँ का पीछा करते फिर रहे होते हैं. हाँ एक बात और बता दे नूर जहाँ का घर कहाँ है, उसके परिवार में कौन कौन है ये सारी बाते अभी तक करीम मियाँ को कुछ खबर ही नहीं है. पर रहन सहन से यही लगता है नूर जहाँ एक करीब परिवार से है. लेकिन नूर जहाँ को घर के खाने में चिकन न हो तो खाना बेस्वाद सा लगता है. अब ऐसे हालात में नूर जहाँ का एक ही सहारा है करीम. और आज ओ बाज़ार के पिछवारे वाली गली में करीम से मिलने वाली हैं. करीम और नूर दोनों बगीचे के झाड़ियों में सूनसान जगह पर एक-दुसरे की बाँहों में बाँहे डालकर बैठे हैं. चलिए देखते हैं अब आगे क्या होता हैं.   

नूर जहाँ- मियाँ करीम अल्लाह के लिए अब तो छोड़ दो. अम्मी घर पे इंतज़ार कर रही होंगी. और तो अब्बा से बोलकर आई हूँ आज उन्हें देशी मुगे का चिकेन जरूर बना के खिलाऊँगी.

करीम – तुम मुर्गे की चिंता न करो. बस थोड़ी देर और रुक जाओ. जी भर के प्यार कर लेने दो.

नूर – तुम्हारा जी तो कभी भरता ही नहीं. कब तलक इस तरह चोरी छिपे मिलते रहेंगे? अपने अब्बा से बोलकर निकाह कर लो. फिर दिन-रात तारो की सैर करते रहना.

उसी वक़्त नूर के मोबाइल पर एक कॉल आता है. नूर अपने आपको करीम की बाँहों से छुडाते हुए...

नूर – करीम! करीम छोडो. देखो अम्मी का फ़ोन आ रहा है.

करीम – सब खैरियत तो है?

नूर – पहले मुझे फ़ोन पर बात को करने दो.

करीम नूर कि कोमल बाँहों से अपने आपको अलग करता है. और नूर कॉल रिसीव करने जैसे ही चली नूर का फोन स्विच ऑफ हो जाता है.

नूर – हाय अल्लाह! इसकी तो बैटरी ही ख़त्म हो गयी. कब क्या होगा? तुम्हे अब का बोल रखा है एक अप्पल का बढ़िया सा विडियो कॉल करने वाली मोबाइल खरीद दो. कम से कम हम दोनों विडिओ कॉल पर प्यार भरी बाते को करेंगे. लेकिन लगता है अब तुम्हारे बस की बात नहीं रही.

करीम – अरे नूर कैसी बाते कर रही हो? आज तक तुमने जो डिमांड किया मैंने पूरा किया क्या? अब इसे क्यों नहीं करूँगा? बस थोडा सा मौका और दे दो.

नूर – खैर अब तो मुझे चलना चाहिए. अच्छा जाने से पहले ये तो बताओ अपने अब्बा के दूकान से चिकन लाये हो या नहीं?

करीम – अरे क्यों नहीं मेरी नूर जहाँ, अभी रुको. (करीम आवाज़ देता है) अकरम! अरे अकरम!

अकरम एक दुबला पतला सा लड़का दौड़ते हुए करीम के पास आता है और चिकन की थैली नूर जहाँ के हाथो में थमा के चला जाता है. नूर जाने के लिए तैयार हो जाती है. नूर अपने दुपट्टे को दुरुस्त करती है और करीम बड़े गौर से नूर को घूरते रहता है फिर करीम जाते हुए नूर की कलाई अपनी तरफ खीचते हुए कहता है.

करीम – कम से कम जाने से पहले हमारा मुँह तो मीठा करते जाओ.

करीम नूर के कोमल गालो को पकड़ चूम लेता है और तैस में आकर नूर करीम को धकिया देती है.

नूर – अब मुझे जाने दो, हर चीज फ्री में नहीं मिलती, कीमत चुकानी पड़ती है. पहले एक अच्छा सा मोबाइल दिलवा दो फिर जलवा देखना मेरा.

नूर अपने कदम रास्ते की ओर आगे बढ़ा देती है और अपने रास्ते पर चली जाती है.

 

-------

दिलजान चूल्हे पर खाना पका रही होती है. एक छोटे से घर के भीतर चारो ओर धुआं ही धुआं फैला हुआ है और दूसरी ओर अब्दुल बीडी फूँकते खटिया पर पडा है.

दिलजान – इतनी रात हो गयी, आसमान में चंद भी निकल आया पर अभी तक करीम घर नहीं आया. न जाने कहाँ होगा मेरा बेटा? मुझे बड़ी फ़िक्र होती है उसकी.

अब्दुल – तेरे ही लाड प्यार ने बिगाड़ दिया है उसे. वही अपने आवारा दोस्तों के साथ आवारागर्दी कर रहा होगा. एक पैसे की फिकर तो है नहीं घर पर माँ-बाप किस हाल में हैं और कैसे कमा के खिला रहे हैं. साहेब जादे चलेंगे घर जब आधी दुनिया सो रही होगी. बस तुम्हारी वजह से निक्कमा हो गया वह. हमारी बात मानो या न मानो. निकम्मा कहीं का!

दिलजान – हाँ हाँ बस करो. अल्लाह ने बस एक ही औलाद बक्सी है हमें. अब उसे भी कोसोगे तो कहाँ जायेगा बेचारा?

उसी वक़्त करीम घर के चौखट पर आता है. घर के भीतर फैले धुआं में खाँसते हुए करीम घर के भीतर आता है.  

करीम – अम्मी! अम्मी!

अब्दुल -  ये लो साहेब जादे आ ही गए. अब खातिरदारी करो. अपने अम्मी के लाडले जो हैं. साहेब जादे को निकम्मे लोगो के साथ आवारागर्दी करने का समय है. पर दूकान पर एक मिनट भी कदम रुकते ही नहीं. अरे अल्लाह का शुक्र मानो जो उस दूकान से घर का राशन चल रहा है. वर्ना भूखे मरते! भूखे! घर में अम्मी बीमार पड़ी है और कभी नहीं कहे के लाओ अपनी अम्मी को अस्पताल इलाज करा लाये. बस दिन भर अपने उन फालतू के साथियों के साथ घूमते फिरते हैं.

करीम – बस घर आये नहीं की आपका विभित भारती शुरू हो जाता है. आज ३० सालो से दूकान चला रहे हैं. क्या हासिल कर लिया. देखो अब्बा हमारे दोस्तों को फालतू न कहो. हम किसी बड़े बिज़नस की शुरुवात करने वाले है. बस कहीं से थोडा पैसे का झोल हो जाए बस. और रही बात अम्मी को अस्पताल ले जाने की तो ये हमसे नहीं होगा.

अब्दुल – लो सुन लो, ये है अपनी औलाद हैं. अपनी अम्मी को अस्पताल तक नहीं ले जा पा रहे हैं और बिज़नस करेंगे? अपनी शक्ल देखी है और तो और अपने कपडे देखे हैं. कहीं से बिज़नस मैन लगता है. अरे मवाली लगता है, मवाली!

करीम – अरे अब्बा बस करो, आपको यह सब समझ न आयेगा. ये सब अपना स्टाइल है. और रही बात अम्मी को अस्पताल ले जाने की तो, आप भेजते हो खैराती अस्पताल में, अम्मी तुझे तो पता है न खैराती अस्पताल में सारा दिन चक्कर काटते रहो, फिर जाके दवा के नाम पर चंद टिकियों चिपका दी जाती हैं. कितनी बार कहे हैं किसी अच्छे अस्पताल में अम्मी को दिखा दो. पर आप हो के कंजूसी करते हो.

अब्दुल – कंजूसी न करे तो खायेंगे क्या? तेरी अम्मी को कैंसर है प्राइवेट अस्पताल वाले लाखो रुपये का डिमांड करते हैं, अब तू ही बता इतने पैसे हम कहाँ से लायेंगे

करीम – तो क्या हुआ. ओ है न... ओ करीम चिकन मटन शॉप” बेच दो.

अब्दुल और दिलजान दोनों अचाम्भित होकर करीम की तरफ देखते हैं. और करीम सकपकाते हुए दोबारा बात दोहराता है.

करीम – हाँ सही कह रहे हैं. ओ दूकान बेच दो. जो पैसे मिलेंगे उससे अम्मी का इलाज भी हो जाएगा और मैं कुछ बचे पैसे से अपना इत्र बनाने वाली फैक्ट्री भी खोल लूँगा.

अब्दुल – (चिल्लाकर बोलता है) पिछले छे महीने से तू यही बोल रहा है. ले आज बेच दी.

अब्दुल खूटी में टंगी थैला निकाल कर पैसे निकालता है.

अब्दुल – ये रहे पैसे. घर में जिसका जवान बेटा बैठा हो और पैसो के लिए बाप को अपना एक आखिरी जीविका का साधन बेचना पड़े. लानत है ऐसे बेटे पर.

करीम अपनी बूढी अम्मी की तरफ देखते हुए कहता है.

करीम – अम्मी अब्बा अपने पुरे जीवन में इतने पैसे एक साथ नहीं देखे न, इसलिए इतने पैसो को देख पगला गए हैं. अब इन सब को थोड अम्मी, मुझे भूख लगी है खाने के लिए कुछ दे दे.

दिलजान को करीम पर रहेम आ जाती है और वह थाली हाथ में ले करीम से कहती है.

दिलजान – रुक देती हूँ. इंसान सारी दुनिया में अपने बच्चे के सामने मजबूर हो जाता है. चाहे उसकी औलाद लायक हो या न हो. पर वह उसे आसानी से भुला नहीं सकता.

दिलजान थाली में खाना निकालती है. उसी वक़्त दिलजान को तेज खांसी आने लगाती है. खाँसते-खाँसते दिलजान का चेहरा लाल पड़ जाता है. करीम दिलजान की तरफ देखते हुए उसे पानी का गिलास उठाकर पानी पिलाता है. दिलजान की खांसी रुक जाती है.

करीम – अम्मी दवा कहाँ रखी है? जल्दी बोल मैं लाकर देता हूँ.

दिलजान – क्या बात है बेटा? आज तुझे अपनी अम्मी पर बड़ा प्यार आ रहा है.

अब्दुल – जरूर कुछ मतलब होगा.

दिलजान थाली में करीम को खाना पड़ोस कर देती है. करीम परोसी थाली अपनी ओर ले खाने पर टूट पड़ता है जैसे मानो करीम कई दिनों से भूखा हो. खाना खाते हुए करीम अपनी अम्मी से कहता है.

करीम – अम्मी हमें कुछ पैसो की जरूरत है.

अब्दुल – अब लो! मैंने बोला था न जरूर कुछ मतलब है. हाय अल्लाह ऐसी औलाद किसी को न दे जो जवान हो गली गली सांड जैसे घूम रहा है और पैसो की जरूरत पड़ते ही अम्मी-अब्बा याद आते हैं.

दिलजान – बेटा मेरे पास पैसे तो हैं नहीं, तेरे अब्बा से माँगे ले.

अब्दुल – देख मैं पैसे आवारा गर्दी करने के लिए नहीं दूंगा. इन पैसो को मैंने तेरी अम्मी के इलाज के लिए इकठ्ठा किये हैं.

अब्दुल पैसो से भरा थैला दिलजान के हाथो में देता है.

अब्दुल – देख ये पैसे मैं तुझे तेरे इलाज के लिए दे रहा हूँ. इसे सम्भाल कर रखना. बाहर के चोरो से ज्यादा घर के लोगो से ज्यादा खतरा है इन पैसो को.

अब्दुल करीम पर तीसा कसते हुए घर के बाहर अपनी हुक्के की चिलम लेकर चला जाता है.

दिलजान – लेकिन बेटा तू ने बताया नहीं पैसे किस लिए चाहिए?

करीम – अम्मी मैं सोच रहा हूँ तेरी मदत के लिए घर में एक जनाना ला दूँ. अब देख घर में तू अकेले पड़ी रहती है, कम से कम कोई तो चाहिए तेरी देखभाल के लिए. जो तेरे पैरो की मालिस करे और तेरे लिए समय पर खाने बना दे.

दिलजान – ठीक है बेटा. लेकिन ओ किसकी लड़की है? खानदान कैसा है? और सबसे बड़ी बात ओ दिखाने में कैसी है?

करीम – अम्मी ओ हूर है, हूर. बस उसे एक बार देख लो और फिर देखते ही रहो. अल्लाह कसम! अम्मी उसके चेहरे से नजर हटती ही नहीं. अम्मी ये मान ले ओ पूरा चाँद है चाँद.

दिलजान – जब तू इतना बोल रहा है तो जरूर खूबसूरत होगी.

करीम अपना खाना ख़त्म कर दिलजान के पास आकर बैठ जाता है. अब्दुल ने जो पैसे दिलजान को दिए थे, वही पैसे दिलजान करीम के हाथो में थमाते हुए कहती है.

दिलजान – तू पैसे माँग रहा था न? ये ले पैसे और इन पैसो से मेरी बहु को कोई सौगात दे देना. अब मेरी ज़िन्दगी के चंद दिन बचे हैं. लेकिन अभी अपने करीम को अपना घर संसार बसाना है. उसे निकाह करना है. अब तो अल्लाह से बस यही दुआ है इस घर में एक चाँद सी दुल्हन आ जाए.

करीम – अम्मी इतने पैसे भर के पैसे? सारे मैं रख लू?

दिलजान – बेटा हम दोनों के बाद वैसे भी सबकुछ तेरा ही तो है. लेकिन सुन सारे पैसे खर्च न करना. वर्ना तेरे अब्बा मुझे नाराज हो जायेंगे. जा जाकर तू अपने पास सम्भाल ले इन पैसो को रख ले.

करीम पैसो से भरा थैला का तकिया बना अपने सर के नीचे रख खाट पर खुले आसमान में लेटा होता है. करीम मन ही मन खुश है. उसके खाबो और ख्यालो में नूर जहाँ गूँज रही होती है. करीम को सब कुछ जन्नत कि तरह लग रहा होता है.

---------

सुबह के वक़्त घर के आंगन में नूर गैस स्टोव पर रोटियाँ बना रही होती है. सूरज की तेज रोशनी नूर के चहरे पर पड़ रही होती है. अपनी चुनरी से सर ढक नूर रोटियाँ बेल रही होती है. वहीँ घर के बाहर करीम अपनी खटारा मोटरबाइक लेकर नूर के दरवाजे पे आता है और मोटर बाइक एक किनारे पार्क कर. नूर के बंद दरवाजा को बाहर से खटखटाता है.

नूर – कौन है? जो कोई भी हो अन्दर आ जाओ. दरवाजा खुला हुआ है.

बाहर से चलकर करीम घर के आंगन में आता है. करीम के सामने आँगन में बैठ नूर रोटियाँ बना रही होती है. नूर अपनी नजरे उठाकर ऊपर के तरफ देखती है सामने करीम खड़ा होता है. करीम को आँगन में देख नूर एक पल के लिए अनबोल सी हो जाती है.

नूर – अरे तू अन्दर कैसे आया?

करीम – घर के दरवाजे से.

नूर – अरे पागल हो गया है क्या? किसी पडोसी ने देख लिया तो पुरे मोहल्ले में हो हल्ला हो जाएगा. खुदा का लाख लाख शुक्र है इस समय घर पर अम्मी अब्बा नहीं हैं. खुदा के लिए फ़ौरन यहाँ से चले जाओ.

करीम – अरे! पगली डरती क्यों है? मैं यहाँ कोई ढाका डालने थोड़े आया हूँ. मैं तो तेरी एक झलक देखने आया हूँ.

जमीन पर बैठी नूर के बाँहों को खींचते हुए उसे उठा देता है. नूर के हाथ काँप रहे होते हैं और फिर करीम उसके हाथो को अपने हाथो में थाम लेता है. काँपते ओठो से नूर करीम से कहती है.

.नूर – पर तुझे मेरे घर का पता कैसे पता चला?

करीम – ओ अपना अकरम है न? बस उसे ही एक दिन तेरे पीछे लगा दिया था. बस सब पता चल गया.

नूर – क्या पता चल गया?

करीम - अरी वही तेरे घर का पता.

नूर – अब देख मेरी रोटियाँ जल जा रही हैं अब तू जा.

करीम – ऐसे कैसे चला जाऊ?

करीम नूर की कलाई जोरो से पकड़ जबरन नूर को बरामदे में लाता है. करीम के इन हरकतों को देख नूर हक्की बक्की रह जाती है. उसे कुछ सूझ न रहा होता है की वह क्या करे? करीम नूर को अपनी बाँहों में भर लेता है. रस भरे नूर के गुलाबी ओठ के पास करीम अपने ओठ ले जाकर कहता है.

करीम – अरे डर कहे रही है? अगर खुदा ने चाहा तो हम सब ठीक कर देंगे और जल्द ही निकाह भी तुमसे करेंगे. देख तेरे लिए क्या लाया हूँ.

करीम अपनी जेब से एप्पल का नया चमचमाता मोबाइल फोन निकाल नूर के हाथो पर धर देता है. नया मोबाइल हाथ में आते ही नूर के तेवर बदल जाते हैं. वह खिलखिलाकर हँसते हुए करीम से कहती है.

नूर – हाय अल्लाह! मैंने तो मजाक किया था और तुमने सच में ला भी दिया. लेकिन अभी अल्लाह के लिए घर से चले जाओ अम्मी अब्बा आ जायेंगे. और वादा करो फिर दोबारा यहाँ नहीं आओगे.

करीम – दत! कुछ भी बकती हैं. क्यों नहीं आयेंगे? जरूर आयेंगे. अब हम बहुत जल्द इस घर के जमाई जो बनाने वाले हैं.

नूर – जमाई?

करीम – हाँ यानी तुम्हारा शौहर.

करीम नूर के चेहरे को बड़े गौर से घूरते हुए उसके गालो को चूम लेता है. नूर भी अपना आपा खो देती है और दोनों एक दुसरे के बाँहों में समा जाते हैं. तभी एक आहट आती है. दरवाजे के आड़ से एक नन्हा बच्चा साहिल नूर को आवाज लगता है.

साहिल – अम्मी! अम्मी!

नूर झट से अपने आपको संभालती है और साहिल के तरफ देखती है. करीम की भी नजर साहिल पर पड़ती है. साहिल अपनी अम्मी को किसी और के बाँहों देख संकोच में पड़ जाता है. साहिल के सामने हुए इन हादसों को छिपाते हुए नूर साहिल से कहती है.

नूर – बेटा ये, तेरे चचा जान हैं. और हमें अम्मी न कहे.

करीम – कौन है बच्चा? और तुम्हे अम्मी क्यों कह रहा है?

नूर – ये... ये मेरे पड़ोस में रहता है. बड़ा शरारती है. बस हमसे शरारत करने के लिए ऐसा कह रहा है.

करीम साहिल के करीब आता है और उससे कहता है.

करीम – बेटा ये तुम्हारी अम्मी नहीं हैं, ये हमारी होने वाली बेगम हैं.

तुतलाते हुए साहिल करीम से कहता है.

साहिल – आप झूठ बोल रहे हो. ये हमारी अम्मी ही है और मेरे अब्बा भी आ रहे हैं.

करीम – अब्बा!

करीम आश्चर्य भरे नजरो से नूर कि तरफ देखता है. नूर बात को टालने के लिए करीम से कहती है.

नूर - प्लीज अब तुम जल्दी जाओ.

साहिल – मैं सच कह रहा हूँ, अब्बा आ रहे हैं.

साहील के बात को सुनते ही नूर डर जाती है. इशारों से नूर करीम से जाने के लिए कहती है और करीम घर के मुख्या दरवाजे से जैसे बाहर आता है, वह दरवाजे पर हमीद से टकरा जाता है जो घर के भीतर जा रहा होता है.

करीम – सॉरी.

हमीद एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति है और आपको बता दे ओ नूर का सौहर भी है. नूर ने पैसो के लिए हमीद से निकाह कर लिया था. हमीद अनजान व्यक्ति से टकराने पर जिस तरह लोग हैरान होते हैं. ठीक वैसे यहाँ पर हमीद हैरान होता है और करीम से पूंछता है.

हमीद -  आप? और हमारे घर में कैसे?

करीम -  ओह! तो ये मकान आपका है.   

करीम बड़े खुश मिजाज होकर कहता है.

करीम – सलाम चचा जान, मैं आपकी बेटी नूर से मिनले आया था.

हमीद – नूर से मिलने!  और ज़नाब आपको बता दे नूर हमारी बेटी नहीं, बेगम है. और इतना ही नहीं हमारा एक पांच साल का बेटा भी है. और तुझे शर्म नहीं आती एक शादी शुदा जनाना के घर आ इस तरह के हरकत करना.

उसी वक़्त नूर कमरे से बाहर आती है. हमीद और करीम दोनों में बहस चल रही होती है.

करीम – नूर ये खुसद बुद्दे को बोल दे की हम दोनों एक दूजे से प्यार करते हैं.

हमीद डाँटते हुए नूर से पूँछता है.

हमीद - नूर ये कौन है?

निकाम के आज सात साल बाद हमीद पहली बार एस लहजे में नूर से बात की होगी. हमीद के चेहरे पर गुस्सा साफ़ नजर आ रहा था. इस वक़्त नूर के साथ सब कुछ अचानक एक घटना के बाद दूसरी घटना घटित हो रही थी. नूर रोते और घबराते हुए हमीद को जवाब देती है.

नूर -  ये मुझे आते जाते रास्ते में छेड़ता है. और इतना ही नहीं मेरा पीछा करते हुए आज ये अपने घर भी आ गया. इस पर “इश्क का भूत” सवार है.

नूर के आँखों से आँसू टपकने लगते हैं. नूर की बाते सुनते ही करीम के पैरो तले जामीन खिसक गयी होती है. उसके आँखों के चारो ओर अँधेरा छा जाता है. करीम तैस में आकर कहता है.

करीम – बचचलन! बेह्हा! मुझे फँसना चाहती है.

नूर जोर से जोर से अपनी छाती पीट कर चिल्लाती है.

नूर – हाय अल्लाह! अरे मोहल्ले वाले कोई हमें बचाओ!

नूर को जोर-जोर से रोता देख. हमीद करीम का कॉलर पकड़ लेता है. दोनों में हाथा पाई और झड़प होने लगती है. चारो ओर चीख और पुकार सुन पड़ोस के लोग नूर के घर के सामने जमा हो जाते हैं. पड़ोसियों के नजर में हमीद एक नेक और सीधे-साधे इंसान होते हैं और लोग इनकी मदत करने के लिए करीम पर टूट पड़ते हैं. करीम पर चाटे और घूसों की बौछार होने लगती है. लोगो ने करीम से कोई सफाई और कोई पूँछताछ न की और करीम को मार मार कर जमीन पर लिटा दिया.  इतना ही लोग बेहोश पड़े करीम को घसीटते हुए बीच सड़क पर छोड़ चले जाते हैं.

---------

चारो ओर सन्नाटा छाया हुआ है. दोपहर की तेज धूप सड़क पर बेहोश पड़े करीम के चहरे पर पड़ रही होती है. सारा शरीर जख्मी और लहू लुहान हुआ होता है. आँखों के नीचे काला पड़ गया है. वह धीरे-धीरे उठने की कोशिश करता है. दर्द से करीम कराह रहा होता है. किसी तरह वह उठने की कोशिश करता है और उठकर लंगडाते हुए अपने घर के ओर चलने लगता है.     

---------

करीम के घर के पास लोगो की भीड़ जमा होती है. लोगो के चेहरे दुखी और मायूस हैं. इन सभी के करीब लडखडाते हुए करीम पहुचता है. करीम को देखते ही लोगो की भीड़ अपने आप करीम को घर में जाने के लिए रास्ता छोडती है. अपने जगह पर खड़े लोग अपने आप एक कदम पीछे कर लेते हैं. खाट पर कफन में लपेटी लाश पड़ी होती है. अब्दुल खाट के सिरहन पकडे बैठा होता है. आँखों से आँसू बह रहे होते हैं. उसके सामने करीम लड़खड़ाते हुए आ जाता है. अब्दुल रोते और दबी आवाज़ में करीम से कहता है.

अब्दुल – बेटा तेरी अम्मी! अब नहीं रही.

ये सुनते ही करीम के शरीर में एक करंट की लहर फ़ैल गयी. एक पल के लिए वह निरजीव सा हो गया.

अब्दुल – तेरी अम्मी नहीं रही बेटा और थैले में रखा पैसा भी न जाने कहा गायब हो गया. हम बर्बाद हो गए बेटा.  हम बर्बाद हो गए बेटा. 

करीम के आंखो से आँसू बहने लगते हैं. खाट का दूसरा सिरहन पकड़ वह भी जोर-जोर से रोने और चीखने लगता है. 

समाप्त-

Story In Hindi Read (“इश्क का भूत”) उम्मीद करते हैं आपको यह कहानी जरूर पसंद आई होगी. अपने मूल्यवान कमेंट हमें जरूर करे. 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Please do not enter any spam link in the comment box.