Love story in Hindi sad (एक करोड़!) |
Love story in Hindi sad (एक करोड़!)
अमित अपनी कार के साथ मॉल के बाहर काफी देर से इंतज़ार कर रहा होता है. अशोक चलते हुए अमित के पास आता है.
अशोक – सॉरी यार बस मिस हो गयी थी. बस इसीलिए थोड़ी सी देर हो गयी.
अमित – थोड़ी देर! पिछले एक घंटे से तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ. तुझे पता है एक घंटे में कितने फैसले हो जाते हैं किसी फर्म में. फोरिन डेलीगेशन के साथ मीटिंग थी. उसे ड्राप करके तेरे लिए आया हूँ.
अशोक – सॉरी बोला न भाई, अब क्या तेरे पैर पडू?
अमित – खैर कोई बात नहीं, अब अन्दर चल.
अमित अपने संग अशोक को लेकर मॉल के भीतर जाता है. और मॉल में एक कपडे की दूकान पर लेकर जाता है. शॉप में काम करने वाला एक लड़का उन दोनों के पास आता है.
सेल्स बॉय – यस सर?
अमित – इनके लिए कुछ अच्छे और लेटेस्ट फैशन के कपडे दिखाओ.
अशोक – मेरे लिए? लेकिन यार मेरे पास आलरेडी बहोत से कपडे हैं. मुझे किसी कपड़ो की जरूरत नहीं है. मैं कपडे नहीं ले सकता.
अमित – तुझे लेना होगा.
अशोक – नहीं!
अमित – तुझे मम्मी की कसम.
अशोक – देख यार तू हर बार मोम की कसम न दिया कर. देख मैंने तुझे पहले भी कई दफा बोल चूका हूँ.
सेल्समेन उन दोनों के सामने खड़े ही रहता है. अमित सेल्समेन से कहता है.
अमित – प्लीज आप कपडे दिखाए.
सेल्स बॉय – यस सर!
सेल्समेन शोवकेस से निकालकर कुछ कपडे उनके सामने लाकर रख देता है.
अशोक – लेकिन यार मैं तो जीन्स पहनता नहीं. आई डोंट लाइक दिस.
अमित – हां अशोक तू तो जीन्स कभी पहनता नहीं. पर इस बार तुझे मेरे लिए पहनना होगा.
अमित अपने हाथो में लेकर कपडे देखता है और फिर सेल्समेन से उनके प्राइस पूंछता है.
सेल्स बॉय – सर ओनली टू थाउजेंड रुपीस.
अशोक – ये तो यार बहोत मंहगी है, हम ऐसी जीन्स बाहर सड़क पर ले लेते हैं सस्ती मिल जायेगी.
अमित सेल्समेन से कहता है.
अमित – प्लीज आप ये टी शर्ट और ये जीन्स दोनों पैक कर दे.
अशोक – लेकिन यार...!
अमित अपने हाथो से बोल रहे अशोक का मुँह बंद कर देता है. अशोक शांत हो जाता है. सेल्समेन कपडे पैक कर के अमित के हाथो में देता है और अमित काउंटर पर उनके पैसे देकर दोनों मॉल से बाहर आते हैं.
अमित – अब चल तुझे जल्दी से मैं घर छोड़ देता हूँ. मुझे और बहुत से काम हैं.
अशोक – लेकिन फंक्शन क्या है? तूने कुछ बताया नहीं.
अमित – पहले कार में बैठ, फिर बोलता हूँ.
दोनों कार में बैठ जाते है और अमित कार स्टार्ट कर उसे ड्राइव करता है.
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कार सड़क पर रफ़्तार में चल रही होती है.
अशोक – यार तू कार धीरे चला. मुझे डर लग रहा है.
अमित – तू टेंशन न ले. तेरे यार के होते तेरा कुछ गलत नहीं होगा. यार तू एक बात बता जब मेरे जैसा कोई अमीर तेरा दोस्त है तो तुझे बस में चलने की क्या जरूरत है. मैं तुझे तेरे जन्म दिन पर एक कार तुझे गिफ्ट करूँगा.
अशोक – कार? नहीं यार मैं ऐसा ही ठीक हूँ. एक गरीब को अपनी औकात से बढ़कर सपने नहीं देखने चाहिए.
अमित – फिर तू आमिर और गरीब की बाते लेकर बैठ गया. ये सब पुरानी फिल्मो में बाते होती थी, पर आज के समय में ये सब नहीं होता. हम सब एक जैसे हैं. और तू भी तो टॉप क्लास में इंजीनियरिंग पास किया है. आज नहीं कल तुझे भी कोई अच्छी सी नौकरी मिल जायेगी. और तुझे तो पता है मैं तेरी कॉपी से नक़ल कर कर के प्रमोट हुआ हूँ. फिर भी मेरे पास पैसे हैं और तू अभी भी बेरोजगार. तुझे तो मैंने बोला जब तक जॉब नहीं मिल जाती तू मेरे कंपनी में काम कर ले. लें तू है की मानता नहीं.
अशोक – बस बस यार. गाडी यहीं पर रोक दे मेरा घर आ गया.
अशोक बस्ती के बाहर सड़क पर गाडी रोक देता है. कार का डोर खोल अशोक कार से बाहर आता है.
अशोक – सो अब मुझे चलना चाहिए.
अमित – यार तेरे घर के इतने पास आने के बाद भी तू मुझे घर नहीं बुलाएगा?
अशोक – सॉरी यार. चल कार यहीं पर पार्क कर दे और चल.
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अशोक अमित को एक सकरी गली से होकर अपने कालोनी में लेकर आता है. दोनों घर के सामने होते हैं.
अशोक – देख यही है मेरा घर. अब चल अन्दर.
घर के भीतार आते ही अमित घर के चारो ओर देखता है.
अशोक – क्या देख रहा है? यार ये गरीबो का घर है ऐसे ही होते हैं.
अमित – नहीं यार मैं तो बस यूही.
अशोक एक चेयर लाकर अमित के सामने रखता है.
अशोक – खैर छोड़ बैठ जा. आज तू पहली बार मेरे घर आया है. मैं तेरे लिए चाय – कॉफ़ी लेकर आता हूँ.
अशोक किचेन की तरफ जाने लगता है. अशोक को रोकते हुए अमित कहता है.
अमित – और कौन-कौन रहता है तेरे साथ? क्युकी घर में कोई और नजर नहीं आ रहा है. आज तक तूने मुझे कुछ नहीं बताया अपने परिवार के बारे में.
उसी वक़्त अमित की नजर दीवार पर लगे अशोक के मोम-डैड की तस्वीर पर नजर पड़ती है.
अशोक – यार तू तो मेरे मोम – डैड के बारे में जानता है. ओ एक रोड एक्सीडेंट में मारे गए थे.
अमित की नजर टेबल पर रखे फीमेल मेकअप किट और कंगन पर पड़ती है.
अमित – नहीं तेरे साथ जरूर कोई फीमेल भी रहती है.
अशोक के चेहरे पर पसीने छूटने लगते हैं.
अशोक – (हडबडा कर) नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं. खैर तू बैठ मैं तेरे लिए चाय लेकर आता हूँ.
अमित – तूने यार कॉलेज के दिन याद करा दिए. हॉस्टल में तू मेरे रूममेट हुआ करता था. और अक्सर चाय तू ही बनाता था. प्लीज यार अपने हाथ की चाय पिला दे.
अशोक – ओके!
अशोक किचेन के भीतर चला जाता है.
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अशोक किचेन में चाय बना रहा होता है.
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संध्या साडी में सुहागन के जोड़े के साथ कमरे के भीतर आती है. संध्या के हाथ में एक बैग होता है. कमरे का दरवाजा खुला देख संध्या आश्चर्य होती है. संध्या की नजर कमरे में बैठे अमित से टकराती है. संध्या अपना पल्लू सही करते हुए, हल्का सा घूँघट ले लेती है.
संध्या – आप?
अमित – जी मैं अशोक का फ्रेंड हूँ. और आप?
संध्या – मैं उनकी पत्नी राधा हूँ.
मुस्कुराते हुए अमित संध्या से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ संध्या की तरफ बड़ा देता है. संध्या हाथ जोड़ नमस्ते करती है. असहज अमित अपना हाथ पीछे करते हुए वह भी नमस्ते करता है. उसी वक़्त अशोक किचेन से चाय का प्याला लेकर कमरे में आता है. अशोक आश्चर्य से संध्या की तरफ देखता है. एक पल के लिए तीनो शांत रहते हैं. अमित आगे बड़कर अशोक के हाथो से चाय का प्याला ले लेता है. चाय की चुस्की लेते हुए अमित अशोक की तरफ देखता है.
अमित – अरे वाह क्या बात है? तूने बिलकुल वही चाय बनाई है जो हॉस्टल में बनाता था.
अमित अशोक और संध्या की देखते हुए कहता है.
अमित – अरे यार तुम दोनों कुछ तो बोलो.
अशोक – (अमित की ओर इशारा करते हुए संध्या से कहता है) ये मेरे कॉलेज टाइम का दोस्त है और मेरा बॉस भी. मैं इसी की कंपनी में काम करता हूँ.
संध्या अमित को दोबारा नमस्ते कर, दुसरे कमरे के भीतार चली जाती है. अमित अशोक की ओर गौर से देखता है.
अमित – यार तू तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला. इतनी खूबसूरत बीवी लेकिन कभी हमसे जिक्र तक नहीं किया.
अशोक – देख यार, मैं मानता हूँ हम कॉलेज के समय साथ में पढ़े लिखे लेकिन तेरे स्टेटस और मेरे स्टेटस में जमीन आसमान का अंतर है. मैं तुम्हारी कंपनी का एम्प्लोयी हूँ और तुम कंपनी के मालिक.
चाय का प्याला टेबल पर रख अमित अशोक के पास आता है और अशोक के कंधे पर हाथ रखता है.
अमित – देख मैंने तुझे कभी भी नौकर नहीं समझा. तू तो मेरा भाई है. तू डर न तुझे जल्द ही मैं कम्पनी में हायर पोस्ट दे दूंगा. फिर मजे करना. फ्रेंकली मैं एक बात बोलूं. मुझे तेरी वाइफ बहुत पसंद आई. और मैं इसके लिए तुझे एक करोड़ रुपिया भी दे सकता हूँ. तुझे यकीन नहीं न रुक.
अमित अपनी जेब से चेक निकाल, एक चेक कर अशोक के हाथ में दे देता है.
अमित – तू सोच ले. अब मुझे चलना चाहिए, अरे यार भाभी को नहीं बुलाएगा? कम से कम एक बार जाते जाते फिर से मिल तो लू.
अशोक शांत रहता है.
अमित – भाभी जी! भाभी जी!
संध्या भीतर के कमरे से बाहर आती है. अमित अपनी जेब से कुछ पैसे निकाल कर संध्या को देता है.
अमित – प्लीज भाभी जी ये रख लीजिये. आप लोगो ने अपनी शादी के बारे में हमसे छिपाया लेकिन देवर के नाते मैं आपको एक गुडलक देना चाहता हूँ. प्लीज.
संध्या अशोक की तरफ देखती है और अशोक आँखों के इशारे से उसे लेने के लिए कहता है. संध्या अमित के हाथ से पैसे ले लेती है. और अमित कमरे से बाहर चला जाता है.
संध्या टेबल पर रखे चाय के प्याला को लेकर जाने लगती है.
अशोक – तुम तो कल आने वाली थी. आज कैसे आ गयी?
संध्या – माँ की तबियत अब पूरी तरह से रिकवर हो चुकी हैं. सो मैंने सोचा अब आ जाना चाहिए. क्युकी आप को भी खाने – पीने की तकलीफ है. फिर आपको जॉब भी करना है.
अशोक – हाँ.
संध्या प्याला लेकर किचेन में चली जाती है.
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रात्रि के समय अशोक अकेले उस चेक को हाथ में लेकर कुछ सोच रहा होता है. तभी संध्या के कमरे में आता देख चेक तकिये के नीचे छिपा देता है और संध्या कमरे के भीतर आते ही बिस्तर पर लेट जाती है और फिर अशोक भी संध्या के बगल लेट जाता है. कुछ वक़्त थम कर अशोक कहता है.
अशोक – तुम तो कल आने वाली थी, आज कैसे आ गयी?
संध्या – मोम अब पहले से बेहतर हैं. उनकी तबियात अब बिलकुल ठीक है सो मैंने सोचा आपको खाने पीने में दिक्कत होगी. और उसी वजह से मैं आज ही आ गयी.
अशोक शांत हो बिस्तर के एक कोने करवट ले लेट जाता है और दुसरे करवट संध्या लेटती है. दोनों कुछ छड शांत रहते हैं और फिर संध्या कहती है.
संध्या – एक बात पूँछे ?
अशोक – कहो.
संध्या – ये आपके बॉस थे?
अशोक – हाँ ये मेरा बॉस था. संध्या ये कॉलेज टाइम का क्लासमेट भी रहा है. लेकिन मेरा और इसका फिलहाल कोई मेल नहीं है. मैं एक मिडिल क्लास व्यक्ति हूँ और ओ शुरू से ही एक अमीर माँ बाप का बेटा है. और मुझे इसके दफ्तर में काम करे सिर्फ एक साल हुआ है लेकिन न जाने ओ आजकल मुझ पर क्यों इतना मेहरबान है. मेरी समझ से परे है.
अशोक बोलना बंद कर देता है और कमरे में पूरी तरफ से सन्नाटा छा जाता है.
अशोक – तुम्हे क्या लगता है? क्या कारण हो सकता है.
संध्या कोई जवाब नहीं देती और फिर अशोक पलट कर देखता है. तो संध्या सो रही होती है. फिर दोबारा अशोक भी बिस्तर पर सो जाता है.
घडी में रात के एक बज रहे होते हैं. टेबल पर पड़े रखे मोबाइल पर कई बार रिंग बजती है. रिंग की आवाज़ से संध्या की नींद खुल जाती है. संध्या की आँखे खुलते ही वह बिस्तर पर उठकर बैठ जाती है. संध्या की नजर अशोक पर पडती है, अशोक गहरी नींद में होता है. संध्या मोबाइल कॉल रिसीव करती है.
संध्या – (धीमी आवाज़ में) हेलो!
सामने से कोई आवाज़ नहीं आती है.
संध्या – हेलो? कुछ बोलते क्यों नहीं कौन हो आप?
अमित (फ़ोन पर) – पहचाना? वही पुरानी आशिकी?
संध्या – कौन बोल रहा है?
अमित (फ़ोन पर) – तुम्हारा पुराना आशिक. अमित खुराना!
संध्या – अमित तुम?
संध्या अपना मोबाइल लेकर कमरे से बाहर बालकनी में चली जाती है.
संध्या – देखो अमित, ओ हमारा पुराना अतीत था, पर आज मेरी शादी हो गयी है. प्लीज मेरी ज़िन्दगी बर्बाद न करो? प्लीज सबकुछ भूल जाओ.
अमित (फ़ोन पर) – कैसे भूल जाऊं? तुझे शादी के लिए मेरा एम्प्लोयी ही मिला था.
संध्या – कैसा एम्प्लोयी ओ तो तुम्हारे मित्र है न? क्लासमेट.
अमित (फ़ोन पर) – संध्या यू आर मैड. मैं किसी से भी यूही दोस्ती नही करता. ओ भी अपने ही ऑफिस में एक मामूली सी नौकरी करने वाले एम्प्लोयी से. कभी नहीं.
संध्या – फिलहाल कुछ भी हो, हमें भूल जाओ.
अमित – खैर उस दिन तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी. और हर चीज की एक कीमत होती है. बस हमारी एक इच्छा है. उसे पूरी कर दो हम भूल जायेंगे.
संध्या एक पल के लिए शांत हो जाती है. और कमरे की तरफ देखते हुए, दोबारा कहती है.
संध्या – इच्छा? मैं समझी नहीं? क्या है?
अमित – बस एक रंगीन रात की जरूरत है. बाकी तुम खुद समझदार हो.
संध्या के चेहरे पर पसीने होते हैं. तेज वह चल रही होती है. संध्या के ओंठ ठण्ड से काँप रहे होते हैं.
संध्या – (हकलाते हुए) न... नहीं.
अमित – सोच लो, वर्ना मैं सारे राज तुम्हारे पति के सामने खोल दूंगा.
कमरे से भीतर से कुछ गिरने की आवाज़ आती है और संध्या मोबाइल कॉल कट कर देती है. संध्या जैसे ही अपना मोबाइल लेकर बालकनी से कमरे के भीतर जाने लगाती है, कमरे में मैं डोर पर अशोक खडा होता है. संध्या अपनी नजर छिपाते हुए.
संध्या – (हडबडा कर) अरे आप अब...!
अशोक अपने हाथो से संध्या का मुँह बंद कर देता है.
अशोक – हमने सब कुछ सुन लिया है.
संध्या पसीने पसीने हो जाती है.
अशोक – हम जानना चाहते हैं.
संध्या – ये अमित खुराना अच्छा इंसान नहीं है. जब हम कॉलेज में थे उस समय ये अपने पैसो का शो ऑफ करके मुझे अपने प्रेम जाल में फँसा लिया था. और एक दिन एक हॉस्टल में ले जाके मेरे साथ जबरन मेरी इज्जत को बर्बाद भी कर दिया. लेकिन ये बात आज तक मैं किसी के साथ शेयर नहीं की. यहाँ तक की अपने मम्मी-पापा के साथ भी नहीं. (रोते हुए) और आज आप मुझे मजबूर न करे होते तो आप को भी यह बात मैं कभी नहीं बताती. प्लीज मुझे माफ़ कर दो.
संध्या अशोक के कदमो में गिर जाती है. अशोक संध्या को दोनों हाथो से उठाकर, उसे गले से लगा लेता है.
अशोक – इसमें तुम्हारी क्या गलती है.
फिर दोनों गले लग कर जोर जोर से रोने लगते हैं. अशोक एक पल रुक कर संध्या को अपने आप से अलग करता है.
अशोक – एक बात कहे?
संध्या हैरत से अशोक के तरफ देख रही होती है.
अशोक – हमारे पास जो कुछ भी है सब अमित के वजह से है. अमित दिल का बुरा नहीं है. प्लीज मेरी बात मानो.
संध्या – आप कहना क्या चाहते हैं?
अशोक – देख मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे बुरा न मानना. ओ चाहता क्या है सिर्फ एक रात तुम्हारे साथ न? तो...?
संध्या – तो क्या?
अशोक – तो... तो तुम्हे एक रात उसके साथ गुजार लेनी चाहिए.
संध्या – क्या? आप की ऐसी गन्दी सोच? आपको शर्म नहीं आती?
अशोक – संध्या! संध्या! देखो तुम ओवर रियेक्ट कर रही हो. बदले में ओ हमें करोड़ो रुपये देगा.
संध्या के आँखों में आँसू होते हैं और जोर जोर से रोने लगती है.
संध्या – मैं अभी अपने पापा को फोन करती हूँ.
संध्या अपने मोबाइल पर नंबर डायल करने लगती है. अशोक उसके हाथो से मोबाइल छीन लेता है.
अशोक – देख संध्या ड्रामा न कर.
अशोक संध्या के बाँहों को पकड़ कर कमरे के भीतर धकेल देता है. और बाहर से दरवाजा बंद कर देता है. संध्या कमरे के भीतर जोर जोर से चिल्ला रही होती है. अशोक मोबाइल पर नंबर डायल करता है. और फिर कमरे के बाहर चेयर पर बैठ सिगरेट पीते हुए धुंए के कश हवा में उड़ाता है.
कमरे के दूर पर अमित आता है.
अशोक – मैं आज सारा दिन सोचता रहा की कबतक मैं इस फटहाल स्तिति में जीता रहूँगा. सो मैंने चेक कर लिया है. और तुम्हारे हवाले अपनी संध्या को करने का फैसला भी ले लिया है.
अमित – वैरी गुड.
अशोक – आप कमरे के अन्दर जा सकते हैं.
अमित कमरे के भीतर जाता है. कमरे के भीतर जाते ही अमित अन्दर से कमरे के डोर को लॉक कर लेता है. अमित की नजर संध्या पर पड़ती है जो बिस्तर पर बलाउज और पेटी कोट में बैठी होती है.
संध्या – जब तुमने मुझे एक करोड़ रुपये में खरीद ही लिया है और मेरे पति ने मेरा सौदा तुम्हारे साथ कर ही लिया है तो मैं भी तैयार हूँ अपना जिस्म तुम्हारे हवाले करने के लिए. लेकिन उस करोड़ के चेक को तुम्हे मेरे नाम करना होगा.
अमित जोर जोर से हँसता है.
अमित – मुझे तो खबर ही नहीं थी की तुम एक करोड़ रुपये के लिए मेरी हो जाओगी. तुम रुको मैं अभी चेक लेकर आता हूँ.
अमित डोर खोल दोबारा बाहर जाता है और अशोक के हाथ से चेक छीन लेता है.
अमित – अब इस चेक का असली हक़दार तुम नहीं, तुम्हारी वाइफ है.
अशोक अमित को रोकने की कोशिश करता है और दोनों में हाथा पाई होती है और तैस में आकर अमित अपनी जेब से रिवाल्वर निकान अशोक के सीने में दाग देता और गोली लगते ही अशोक वहीँ पर दम तोड़ देता है.
भीतर के कमरे के डोर पर संध्या खाड़ी होती है.
अमित – संध्या मैंने कुछ नहीं किया. ये सब इसकी गलती है.
अमित जैसे ही घर के कमरे से बाहर जाने लगता है तभी पुलिस मौके पर आकर अमित को गिरफ्तार कर लेती है.
समाप्त----
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