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फिल्म – जानवर (१९९९)
युगल संवाद – अक्षय
कुमार (बादशाह) और आशुतोष राणा (सुलतान)
बादशाह – यहाँ क्यों आये हो? चले जाओ यहाँ से.
सुलतान – अपने पुराने दोस्त से बात करने का ये सलीका तो नहीं है बादशाह. पिछले
सात सालो तू एक दिन भी मुझसे मिलने के लिए जेल में नहीं आया. खैर एक शरीफ आदमी
दुसरे आदमी को भूल सकता है. लेकिन एक गुनेहगार दुसरे गुनेहगार को नहीं भूलता. मैं
इतने दिनों बाद जेल से बाहर निकल कर आया हूँ. और तुझे मुझसे मिलकर ख़ुशी नहीं हुयी?
बादशाह – देखो... नहीं मुझे अपनी ज़िन्दगी के बारे में कुछ सुनना है. नहीं मुझे
तुममे कुछ दिलचस्पी है. चुपचाप यहाँ से चले जाओ.
सुलतान – चला जाऊँगा! पहले मेरे रुपये मुझे वापस कर दो.
बादशाह – कौन से रुपये की बात कर रहे हो तुम?
सुलतान – वाह रे भोले भंडारी. ज़रा अपने यहाँ पर, दिमाक पर जोर डाल के याद करने
की कोशिश करो. कि जब पुलिस ने मुझे गिरफ्तार किया था. तो ओ रुपये तुम्हारे पास थे.
बादशाह – नहीं... ओ रुपये और माल पुलिस ने अपने कब्जे में कर लिया था. मेरे
पास कुछ नहीं है.
सुलतान – कुछ नहीं है तो ये घर-परिवार, बाल-बच्चे, सुख-चैन क्या तुझे वहां पर
पड़े मिले थे? जहाँ से पुलिस ने मेरा रुपिया अपने कब्बे में किया था. नहीं
बादशाह... नहीं. हमारे यहाँ हर चीज का बराबरी का बटवारा होते आया है. तूने अपनी
किस्मत बुलंद करने के लिए हम सब के साथ धोखा किया है.
बादशाह – बस! इसके बाद अगर एक लब्ज भी अपने मुह से निकाला तो तुम मेरा ओ रूप
देखोगे, जो मैं हमेशा के लिए भूल गया हूँ.
सुलतान – बादशाह तू अपने आप को भूला सकता है. लेकिन सुलतान न ही तुझे कभी भूल पाया है और न ही तुझे कभी भूल पायेगा. याद रखना सुलतान ओ बारूद है. जिसे मेरे एक छोटी सी चिंगारी, जला के तेरे खुशियों भरे खलियान को राख कर देगा. (बादशाह सुलतान को घूसा मारता है)
सुलतान –ये घूसा तूने
मुझे नहीं सुलतान के मुह पर मारा है बादशाह.
फिल्म – घायल
युगल संवाद – सुन्नी देओल (काशीनाथ), डैनी (कातिया)
डैनी – काशीनाथ हमें ख़ुशी हुयी तुम्हारी बहादुरी देखकर. तुम्हे भी बहोत ख़ुशी होगी
ये जानकर की आज के बाद तुम मेरे गिरोह में काम करोगे.
काशीनाथ – ये मजदूर का हाथ है कातिया. लोहा पिघलाकर उसका आकार बदल देता है. ये
ताकत खून-पसीने से कमाई हुयी रोटी से है. मुझे किसी के टुकडे पर पलने की जरूरत
नहीं.
डैनी – कीड़े-मकोडो की तरह गली में रेंगने से बेहतर है. यहाँ मर्दों में रहो
शेर की तरह.
काशीनाथ – पिंजरे में आकर शेर भी कुत्ता बन जाता है कातिया. तू चाहता है मैं
तेरे यहाँ कुत्ता बन के रहूँ. तू कहे तो भौकूँ, तू कहे तो काटूँ.
डैनी – ऐसा ही समझो. तो क्या हमारे साथ काम करोगे तो नाम होगा तुम्हारा, इनाम
मिलेंगे, रुपिया-पैसा मिलेगा, इज्जत होगी तुम्हारी और लोग डरेंगे तुमसे.
काशीनाथ – डरा के लोगो को ओ जीता है जिसकी हड्डियों में पानी भरा होता है.
डैनी – (चिल्लाकर) काशीनाथ!
काशीनाथ – मर्द बनने का अगर इतना शौक है तो कुत्तो का सहारा लेना छोड़ दे
कातिया.
डैनी – इसकी मौत सोचनी पड़ेगी.
फिल्म – नसीब
युगल संवाद- गोविंदा (के. पी.), कादर खान (मास्टरजी)
के. पी. – हाँ तो मास्टर जी निकालिए ज़रा हलके से.
(मास्टर जी शराब की बोतल निकलते हैं)
मास्टरजी – औरो के लिए गुनाह सही.
के. पी. – बहुत सही.
मास्टरजी – हम पीते हैं तो शबाब बनती है.
के. पी.- बनती है...
मास्टरजी - अरे सौ कतरा गम निचोराने के बाद, एक कतरा शराब बनती है. के. पी. जो
तुम्हे भूल गया है उसे याद करके रोना अच्छा नहीं है.
के. पी. - ओ मुझे याद नहीं आई मास्टर नजर आ गयी. उसके आज के दीदार ने मेरे कल
के जख्मो को हरा कर दिया. मैं दर्द से तड़प उठा हूँ मास्टर. टूटकर प्यार किया था
मैंने उससे.
मास्टरजी - नहीं के. पी., लेकिन अब ओ किसी और की हो चुकी है.
के. पी. - ओ किसी और की हो सकती है लेकिन मैंने किसी और को नहीं अपनाया. उसने
किसी और का हाथ थाम लिया लेकिन मैं तो आज भी उसकी तस्वीर की पूजा करता हूँ. ये
पूजा होती ही ऐसी है. कोई मूरत को पूजता है, कोई शीरत को पूजता है.
मास्टरजी - के. पी. मैंने आज तक तुझसे कुछ नहीं पूछा लेकिन आज पूछता हूँ.
क्या? हुआ क्या था?
के. पी. - मुझको लम्बी उम्र की दुआ न दो. जितनी गुजरी... न गवार गुजरी है.
मुझे इस बात की ख़ुशी नहीं है कि आज मेरा जन्मदिन है. बल्कि इस बात कि ख़ुशी है की
मेरी गम भरी ज़िन्दगी का चलो एक साल और कम तो हुआ. अरे सावन में ये रेगिस्तान लगता
है ये घर मेरा खाली मकान लगता है.
फिल्म – सरकार
युगल – अमिताभ बच्चन (सरकार), विलेन (रसीद)
सरकार – बुलाओ उसे.
रसीद – आप से अकेले में बात करना था मुझे.
सरकार – समझ लो मैं अकेला
ही हूँ.
रसीद – मेरा कुछ माल आने वाला है शिप से, सेकोरिटी गाँव में कम से कम दो साल तक आता
रहेगा माल. अब ये तो सब जानते हैं की उस इलाके में आप के परमिशन के बिना कुछ भी
नहीं हो सकता. तो... आपका आशीर्वाद चाहिए था हम लोगो को. हर कनसाइनमेंट का बीस लाख
मिलेगा आपको. बीस लाख ओ भी डिलीवरी से पहले.
सरकार – देखो रसीद मुझे
नहीं मालुम तुम मेरे बारे में क्या सुन के आये हो. मैं इस बात को जरूर मानता हूँ
मैं कई ऐसे काम करता हूँ जिन्हें कानूनी नहीं कहा जा सकता. ओ इस लिए की मुझे जो
सही लगता है मैं करता हूँ. ओ चाहे भगवान के खिलाफ हो, समाज के खिलाफ हो, पुलिस-कानून
या फिर पुरे सिस्टम के खिलाफ क्यों न हो. मेरा ये काम तरफ-तरह के लोग अपने-अपने
नजरिये से देखते हैं और मेरे बारे में अपनी एक राय बना लेते हैं. मैं नहीं करूँगा.
रसीद – तीस लाख.
सरकार - ये बिकाऊ समझ रखा है क्या? जानता है तू किससे बात कर रहा है.
रसीद – मेरा मतलब...
सरकार - मतलब समझाने कि कोशिश भी मत करना. रसीद मैं जानता हूँ ओ माल क्या है और क्यों
आ रहा है. नहीं करूँगा मैं. ...और सुनो तुझे भी करने नहीं दूंगा.
फिल्म – दामिनी
युगल संवाद – अमरीश पूरी (चड्डा साहेब), सन्नी देओल (वकील)
चड्डा साहेब - माय लोर्ड ये दामनी निहायती चालाक और काइयाँ किस्म की लड़की है. ये गरीबी में
पैदा हुयी जरूर, पर ख्वाब हमेशा अमीरी की देखती रही. इसीलिए इसने शेखर जैसे लडके
को अपनी खूबसूरती के जाल में फाँस लिया. दरअसल इसकी नजर गुप्ता खानदान की तिजोरी
पर थी. और जब अपनी पूरी कोशिशो के बावजूद ये तिजोरी की चाभी हासिल न कर सकी. तो
जल-भुन कर राख हो गयी. जिस घर ने इसके सपने पुरे नहीं होने दिए उससे इसने बदला
लेने की ठान ली. और इस बात का फायदा उठाकर गुप्ता खानदान के दुश्मनों ने इसे पैसे
देकर खरीद लिया. और उन्होंने बहुत बड़ी साजिश रची. जो बलात्कार बाज़ार में हुआ उसे
उन्होंने ये साबित करने की कोशिश की ओ बलात्कार गुप्ता जी के घर में हुआ है ताकि
गुप्ता खानदान के नाम को हमेशा-हमेशा के लिए मिटटी में मिला सके. माय लोर्ड ऐसी
सैतान लड़की को, नीच-गिरि हुयी लड़की को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए. ताकि औरत जात को एक
सबक मिल सके. डैटस आल युऑनर.
वकील – युऑनर... चड्डा साहेब ने मुझे कंफ्यूज सा कर दिया है. लगता है ये हिंदी
फिल्मे कुछ ज्यादा देखते हैं. क्युकि इनका ये केस हिंदी फिल्मो की तरफ है जिसमे कई
कहानियाँ उलझी हुयी हैं. पिछली तारिख चड्डा साहेब ने कहा था दामिनी पागल है और आज
ये कह रहे हैं की दामिनी चालाक है. इतनी चालाक की ओ स्कीम कर सकती है. साजिस कर
सकती है, प्लान कर सकती है मेरे ख्याल से माय लोर्ड जो लड़की पागल है ओ चालाक नहीं
हो सकती. और ओ इतनी चालाक है तो ओ पागल नहीं हो सकती. इसलिए माय लोर्ड मैं
चाहूँगा. चड्डा साहेब को भी दामिनी की तरह सरकारी खर्चे पर पागल खाने भेज दिया
जाए. कुछ दिनों के लिए. ताकि जब ये ठीक होकर आये तो हमें ठीक-ठीक बताये. दामिनी
पागल है या चालाक ताकि उसी हिसाब से मैं अपना डिफेंस तैयार कर सकू. डैटस आल मीलॉर्ड.
चड्डा साहेब - मीलॉर्ड मैं ये साबित कर चूका हूँ की दामिनी एक गिरी हुयी लड़की...
वकील – गिरे हुए ओ लोग होते हैं जो अपने घर में पली हुयी लड़की का बलात्कार करते हैं.
गिरे हुए ओ लोग होते हैं जो अस्पताल में पड़ी लाचार लड़की का खून करवाते हैं.
चड्डा साहेब - उस लड़की का बलात्कार गुप्ता साहेब के घर में नहीं हुआ और न ही उसका खून हुआ
है उसने आत्मह्त्या की है. उसके लिए मैंने गवाह पेश कर चूका हूँ.
वकील – और मैं उन्ही गवाहों से कुछ सवाल करना चाहूँगा मीलॉर्ड.
फिल्म – शूट आउट एट लोखंडवाला
युगल संवाद – जॉन अब्राहम, मनोज बाजपयी
जॉन अब्राहम – पहली गलती तूने हाथ पकड़ कर की. दूसरी हाथ उठाकर. तीसरी गलती
करने की गलती मत करना. वरना इतना मरूँगा की दर्द को भी समझ नहीं आयेगा की कौन से
जखम से बाहर निकलू.
मनोज वाजपयी - वाह! औरत बाबा आदम के जमाने से हम मर्दों की मार रही है. एक सेब
को क्या तरसी हमें जन्नत से बेदखल कर दिया. पलट कर जब देखा बादशाहों को. तखते पलट
गए. तेरा क्या होगा तूने जिसका हाथ पकड़ रखा है ओ जुबैर की मोहब्बत है.
जॉन अब्राहम – मोहब्बत है तो मोहब्बत को कोठे पर नहीं. कोठी में रखते हैं.
ताकि लोग जुर्रत कम इज्जत ज्यादा करे.
(मनोज बाजपयी जॉन अब्राहम को पैसे देता है)
मनोज वाजपयी - शुक्रिया.
(जॉन अब्राहम मनोज बाजपयी को पैसे लौटा देता है)
जॉन अब्राहम – एक मिनट... मैं इस काम के पैसे नहीं लेता. कोई काम होगा तो बताना.
मनोज वाजपयी - ठीक है, कल मोहब्बत अली रोड पर आजा.
जॉन अब्राहम – मोहब्बत अली रोड पर कहाँ?
मनोज वाजपयी - बादशाह की गली में आ के उसका पता नहीं पूछते. गुलामो के झुके
हुए सर खुद-ब-खुद रास्ता बता देते हैं. अल्लाह आफिस.
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